Lesser Known Indian Freedom Fighters: भारत के लिए अंग्रेजों के खिलाफ़ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जो इतिहास के पन्नो में खो गए
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी | Lesser Known Indian Freedom Fighters
भारत की स्वतंत्रता 200 से अधिक वर्षों की एक लंबी लड़ाई के बाद हासिल हुई थी या सैंकड़ों और हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बाद हमें मिली थी।
एक ओर जहाँ कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के नाम और किस्सों से हम सभी वाकिफ हैं, वहीं दूसरी ओर कई स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी हैं जिनके नाम और कारनामे इतिहास के पन्नों में कहीं खो से गए।
यह लेख भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले उन कुछ अनसुने नायकों के संघर्ष और बलिदान के सम्मान में है। हम हर वर्ष स्वतंत्रा दिवस बड़े ही खुशी और उल्लास से मनाते हैं लेकिन हमें याद होना चाहिए की जिस स्वतंत्रा की हम खुशियाँ मनाते हैं वो लाखों लोगों के बलिदान के बाद हमें मिली।
जिन्हें जीते जी कुछ ना मिला उन्होंने हमारे भविष्य के लिए अपने प्राण न्योछावर किए और स्वतंत्रा की लड़ाई में अपना योगदान दिया स्वतंत्रा दिवस के अवसर पर हमें उन वीर सपूतों के बारे में जानना चाहिए।
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7 Lesser Known Indian Freedom Fighters
खुदीराम बोस: खुदीराम बोस वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे। जब वे देश के लिए फांसी पर लटके थे तब उनकी उम्र मात्र 18 साल, आठ महीने और 8 दिन थी।
बेनो बदल: देश की तिकड़ी बेनो बसु, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता क्रमश 22,18 और 19 साल के थे। जब उन्होंने यूरोपीय संगठनों के भवन में प्रवेश किया। उनके निशाने पर क्रूर पुलिस महानिरीक्षक कर्नल। एन एस सिम्पसन थे। वे उसे मारने में सफल रहे लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया। बेनो बसु ने साइनाइड की गोली खा ली जबकि अन्य दो ने खुद को पकड़े जाने से बचाने के लिए गोली मार ली।
अल्लूरी सीताराम राजू: इन्होंने अन्य स्थानीय आदिवासियों के समर्थन से 1922 से लेकर 24 तक रामपा विद्रोह का नेतृत्व किया। उनकी बहादुरी और वीरता के लिए उन्हें “मनमवीरदू” जिसका अर्थ जंगलों का नायक होता है कहा जाता है।
दुर्गा भाई देशमुख: दुर्गाबाई ने कई सत्याग्रह आंदोलनों का नेतृत्व किया और भारत की संविधान सभा और भारत के योजना आयोग की भी सदस्य रहीं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। 1923 में खादी प्रदर्शनी में उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी किया था की प्रवेश से पहले सभी आंगतुकों के पास उचित टिकट हो। उन्होंने पंडित नेहरू को तब तक प्रवेश करने से रोक दिया था जब तक की आयोजकों ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
बिरसा मुंडा: इनका जन्म रविवार को हुआ था और इसलिए उनका नाम बिरसा रखा गया था। हालांकि 25 वर्ष की कम उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनके कम समय में कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां थी। सबसे उल्लेखनीय एक आंदोलन था जिसने 19 वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश स्टाफ के खिलाफ़ जाने के लिए वर्तमान बिहार और झारखंड के आदिवासियों को प्रेरित किया था।
बेगम हजरत महल: बेगम हजरत महल 1857 के भारतीय विद्रोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। उनके पति के निर्वासित होने के बाद उन्होंने अवध की कमान संभाली और विद्रोह के दौरान लखनऊ का नियंत्रण भी अंग्रेजों से जब्त कर लिया। बाद में बेगम हज़रत को नेपाल वापस जाना पड़ा जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।
अरुणा आसफ अली: शायद हम में से कुछ ने ही इनके बारे में सुना हो, लेकिन उन्होंने 33 साल की कम उम्र में ही प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। उन्होंने ही 1942 में बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराया था। वे कई बार जेल भी गईं।
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